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Wednesday, March 4, 2015

Ban INDIA's DAUGHTER: शुतुरमुर्ग सभ्यता की ओर एक और प्रयास


भारत सरकार ने एक बार फिर वो कर दिखाया जिसमे उसे महारत हासिल है – प्रतिबन्ध. BAN. बैन पहले भी लगते रहे है, और यक़ीनन आगे भी लगते रहेंगे. प्रतिबन्ध हमारे समाजिक विकास का वाहक बन चूका है. अब शायद हम उस स्वर्ण-युग से गुजर रहे है जहाँ अगर दो-तीन हफ्तों में कोई बैन नहीं लगता तो शक होने लगता है की कहीं ‘डेमोक्रेसी’ नाम के खिलौने की बैट्री डिस्चार्ज तो नहीं हो गया? वैसे डेमोक्रेसी और बैन का चोली-दामन का साथ है. जब तक बैन न लगे हमे पता ही नहीं चलता की वो वस्तु, या विचार, या अभिव्यक्ति, जिसे प्रतिबंधित किया जा रहा है, वो कभी अस्तित्व में थे भी या नहीं? वो अंग्रेजी में क्या कहते है... बैन इज द ड्राइविंग फ़ोर्स ऑफ़ डेमोक्रेसी.

अभी गो-मांस पर लगे बैन के बारे में तमाम वाद-विवाद-परिवाद-धर्मवाद-भाग्वावाद-टोपीवाद-मुरादाबाद-अहमदाबाद के बारे में पढ़-सुन ही रहा था की भारत-सरकार ने टाइम-पास का एक और झुनझुना पकड़ा दिया. निर्भया रेप-कांड पर बने डाक्यूमेंट्री को प्रतिबंधित कर के. यकिन मानिये दोस्तों, इस डाक्यूमेंट्री के बारे में कुछ छः महीने पहले खबर पढ़ी थी की ऐसा कुछ प्रयास हो रहा है. फेसबुक पर कई क्रान्तिकारी पोस्ट भी चेपे थे लेकिन उसके एक हफ्ते बाद ही सब कपूर की तरह हवा हो गया. और हो भी क्यूँ ना, हम कोई चुनाव थोड़ी लड़ रहे है जो मुद्दों की कमी का एहसास हो? ये तो भला हो भारत-सरकार का जिसने एक बार फिर याद दिला दिया की हम ने इस मुद्दे पर भी क्रांति का भी बीड़ा उठाया था. वैसे जिस देश में तीस करोड़ लोग गरीबी रेखा से नीचे रहते हो, बीस करोड़ से ज्यादा शायद एक वक़्त का भोजन भी नहीं जुटा पाते हो, जहाँ चालीस प्रतिशत सांसद-विधायक आपराधिक छवि के हो, वहां की सरकार अगर इतनी प्रयत्नशील है की किसी फिल्म, या कार्टून या किताब को प्रतिबंधित कर दे तो यकीन मानिये, हमे फिर से विश्वगुरु बनने से कोई नहीं रोक सकता. विज्ञान भी नहीं.

एक बात और, प्रतिबन्ध का मतलब होता है सरकारी खर्चे पर प्रचार. आजतक ऐसा कोई प्रतिबन्ध नहीं सुना जहाँ प्रतिबंधित वस्तु का इस्तेमाल रुक गया हो. गोया उसकी मांग और बढ़ जाती है. अभी पिछले महीने की बात है, अहमदाबाद में कुछ मित्र मिले और तय हुआ की दारु से दोस्ती को सींचने की. अब चूंकि शराब को तौबा कर चूका मैं इस बात से खुश भी था की गुजरात में मदिरा प्रतिबंधित है तो मुझे दोस्तों में साथ होते हुए भी अकेलेपन का एहसास नहीं होगा. लेकिन जहाँ चाह होती है, राह निकल ही आती है. पांच सौ रुपये की बोतल बारह सौ में घर पहुँच गया. दिलवाया भी लोकल MLA के चमचे ने. इसीलिए मेरा मानना है की प्रतिबन्ध का हमारे जीवन में बहुमूल्य योगदान है. बल्कि मैं तो कहता हूँ की बैन एक अखिल-भारतीय प्रयास है उन विचारो को हमारे जेहन में लाने का जो शायद कभी आते ही नहीं. उदहारण के तौर पर, सलमान रुश्दी के नाम से मेरा परिचय तब हुआ जब फतवा और बैन जारी हुआ. MF हुसैन साहब भी शायद कभी कभी मेरी बातों का हिस्सा न होते. और ऐसे हजारो ख्याल, या नाम, या कार्टून, किताबें, फिल्में, गाने, धारावाहिक वगैरह शायद कही गुमनामी के अंधेरों में रौशनी के एक किरण की तलाश में घुट-घुट कर मर जाते लेकिन उनको वो सब नसीब नहीं होता जो प्रतिबंधित होने के बाद मिला.

हम सरकार चुनकर भेजते है की वो हमारे लिए नीतियाँ बनाये, उनका अनुपालन करें और देश को एक ऐसी मजबूत अर्थव्यवस्था बनाये जहाँ हमे ये कहने में कोई शर्म न हो ही हम एक मजबूत अर्थव्यवस्था है. जिस देश में एक-तिहाई आबादी के भोजन की व्यवस्था न हो वो अगर अपनी अर्थव्यवस्था कुछ दो-चार पूंजीपतियों के सहारे आगे बढ़ाना चाहे तो इसमें भी कही न कही देश-हित ही निहित होगा. लेकिन हम बात कर रहे थे प्रतिबन्ध की. मुद्दों से भटकना मेरी पुराणी आदत है, माफ़ी चाहूँगा. खैर... कहीं पढ़ा था की जहाँ से इंसान के सोचने की हद्द समाप्त होती है वहाँ से दोराहा शुरू होता है. दोराहा यानी दुविधा... क्या करें क्या न करें ये कैसी मुश्किल हाय....  दोराहा-जहाँ एक तरफ तो हमे एक कठिन रास्ता मिलता है जिसपर चलने के लिए असीम धैर्य और दूरदृष्टि की जरूरत होती है. आशावाद तो खैर प्राथमिक जरुरत है हीं. दूसरा रास्ता होता है आसान रास्ता जिसके लिए किसी आपको ज्यादा सोचने-समझने की जरुरत नहीं होती है. बस सिक्का निकालिए, टॉस करिए और पारी की शुरुआत कीजिये. मजेदार बात ये है की दोनों ही सूरत में परिणाम दूरगामी होंगे.

बहुत दिनों बाद कुछ लिखने का प्रयास किया है... अगर उमंग में कुछ ज्यादा हो गया तो कहीं मेरा ब्लॉग भी प्रतिबंधित न जाये. आखिर ‘अभिव्यक्ति की आज़ादी’ जैसी टुच्ची चीजों के लिए हम ‘देश-हित’ को नुकसान थोड़ी होने देंगे.

A letter to friends who keep tagging me in their Happy Moments.


Dear friends who keep tagging me in random posts mocking dissent in Aam Aadmi Party​,

I would like to thank you for taking your valuable time out for sparing a moment for me. It means a lot. And I would also like to share the zeal and enthusiasm over the sadistic pleasure you are enjoying because deep down the heart I am a looser too. Also, I feel great for you guys as you keep tagging me in the posts which are less funny and more an attempt to convince oneself that democracy is the collection of necessary agreement of ideas..

Besides, if it will give you some more pleasure, let me confess that I am also pained at seeing such development in a party I share my emotions with. It irked me that some people within the party itself are trying to bring it down, perhaps unintentionally/unknowingly to a level closer to those whom we were trying to expose. One thing I understand that you are not happy that AAP is withering, you are happy because you believe that AAP is no longer better than the other parties. And there is nothing wrong in such believe, believe me. It's normal. Absolutely.

But I would also like to tell you that this doesn't bother me. I am prepared for this. Not this in particular, but something like this, because it is quiet obvious that when a collective set of body is aspiring to move at a faster pace, it is quiet obvious that some part of it withered during the process. It is also obvious that the force driving them in a direction is a collection of several kind of forces including some negative forces, and according to Principle of Superposition, it is the collective force which move the body and not a particular individual. It's simple Physics, not a Rocket Science equation. It would be quiet idiotic on my part to assume that AAP is an ideal establishment (or anti-establishment, if you'd like to call it). My argument was always based upon the perception that it is relatively better than other choices available. Also the nature has bestowed me with a little piece of mind which allows me to tell wrong a wrong, even if it is served after wrapping it in the adorable cover of Honesty or Nationalism. So, I am sad but not shocked, and hence I am sorry for disappointing you at this front.

And now that we are discussing what is happening in AAP is democratic or not, let's not talk on relative basis simply because I don't want to challenge the reason of your happiness. Good day my dear friend. Have a happy and 'democratic' day ahead.
                                                                                     
Your's Aapiya friend who refuse to ignore evolution.

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