वो कन्या स्कूल की दीवार,
छुट्टी होने का इंतज़ार
वो दोस्तो से तकरार, फिर
रूठ जाने वाला प्यार
वो क्रिकेट का खेल, वो
बैटिंग का इंतज़ार
वो बैटिंग न मिलने पर रूठ
कर चले जाना
बहुत याद आता है वो बचपन
सुहाना
अब हजारो रुपये पाकर भी खुश न हो पाते
तब बीस रुपये में खुद को
राजा मान बैठते
वो किसी बात की परवाह ना
करना
किसी बहाने से उसकी गलियों
के चक्कर लगाना
बहुत याद आता है वो बचपन
सुहाना
वो टीचर्स की फटकार, उसमे
छुपा हुआ प्यार
परीक्षा में दोस्तों से
ज्यादा मार्क्स की दरकार
स्कूल जाते ही छुट्टी होने
का इंतज़ार
अक्सर बनाना सिरदर्द का वो
बहाने बनाना
बहुत याद आता है वो बचपन
सुहाना
वो बोट क्लब की मस्ती वो झील
का पानी
वो नीला फलक, वो वन विहार
जाने की ललक,
वो मच्छ्लीघर की मच्छ्लिया,
वो M.P. नगर की लड़किया
खुली आँखों से ख्वाब देखकर
बरबस ही खुश हो जाना
बहुत याद आता है वो बचपन
सुहाना
वो हिस्ट्री की मिस्ट्री,
वो फिजिक्स का रिस्क
वो जियोग्राफी का डर अब भी
याद है
वो साइंस के रिएक्शन, वो
इंग्लिश के lessons,
रोज़ रट्टा लगाना और बारबार
भूल जाना
बहुत याद आता है वो बचपन
सुहाना
वो हिंदी की कक्षा में पिटाई
का डर
वो संस्कृत की सूक्तिया भूल
जाने का असर
वो मैथ्स के सवाल बार बार
दोहराना
सवाल बना कर कुछ यूँ खुश हो
जाना
बहुत याद आता है वो बचपन
सुहाना
वो उठक-बैठक लगाने में नानी
याद आ जाती थी
नोटबुक बनने के लिए वो जाने
क्या क्या सजा दी जाती थी
नोटबुक न होने पर टीचर्स का
पेरेंट्स को बुलवाना
पेरेंट्स के डर से पड़ोस के
भैया को ले जाना
बहुत याद आता है वो बचपन
सुहाना
वो एक्स्ट्रा क्लास की
मस्ती,
वो इवनिंग क्लास का खुमार
वो कल्पना मैडम के बताये
इम्पोर्टेन्ट क्वेश्चन
उन क्वेश्चन्स में से एक भी
परीक्षा में ना आना
बहुत याद आता है वो बचपन
सुहाना
वो BHEL की गलियों में रोज़ रोज़ जाना
कभी बेर कभी अमरुद तो कभी
आम चुराकर खाना
अक्सर “घर में” होमवर्क भूल
जाना
सब्जेक्ट टीचर से पिटाई का
डर सताना
बहुत याद आता है वो बचपन
सुहाना
वो “कविता” के समोसे, वो
“मिलन” की चाट
वो पिपलानी का मार्किट, वो
बरखेड़ा का हाट
वो पठानी का मंदिर, वह
बुढ़िया की खाट
घंटो बैठ कर दोस्तों से
यूँही गप्पे लडाना
बहुत याद आता है वो बचपन
सुहाना
वो इन्द्रपुरी के “यादव” की
मसालेदार चाय
वो हर बात में कहना “ I am
a Complan boy”
वो हर बात पर बिना
सोचे-समझे शर्त लगाना,
वो पोहा-जलेबी के लिए मन का
अक्सर मचल जाना
बहुत याद आता है वो बचपन सुहाना
Lovely poem..:-)
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