रोज देखता हूं तुम्हें, ओखला बस स्टैंड पर,
जहाँ तुम कालेज बस का इंतजार करती हो,
तुम रोज चली जाती हो, हमे अनदेखा करके,
मै रोज वहीं अपना दिल छोड़ आता हूं,
अगली सुबह तक के लिए, जब तुम फिर आओगी
इस उम्मीद मे, कि देर से ही सही, तुम मिल जाओगी,
हां, मोहब्बत है तुमसे, बस जताना नही आता,
तुमसे इजहार करना है, मगर बताना नही आता,
सरे-राह रोक तुमको, मगर सताना नही आता,
तुम्हारे सिवा लेकिन कही जाना नही आता,
कभी तो बताएंगे तुम्हें, और तुम आ जाओगी,
हां उम्मीद है आज भी की मिल ही जाओगी।
वो दिन याद होगा तुम्हें जब जोरो की बारिश हुई थी,
तुम्हारा इम्तिहान था और बस नही आयी थी,
तब जो शख्स आया था तुम्हारे पास, वो मै ही था,
जो आटोरिक्शा को घूस देकर लाया, वो बेवकूफ मै ही था,
एहसान नही गिनाता हूं, पहचान भी जरूरी नही।
बस बताना मुनासिब समझा कि जो रूमाल खो गया था तुम्हारा,
उसको चुपके से चुराने वाला, अमानतदार मै ही था,
जो Physics के नोट्स तुम छोड़ गयी थी बेकार समझ कर,
उसपर अपना एकमात्र हक जताने वाला, हिमाकतदार मै ही था।
वो आज भी मेरे पास है, मेरे स्टडी टेबल पर रखा,
रोज पढने के बहाने, तुम्हें महसूस करता हूं,
रोज पढ लेता हूं तुम्हारे नोट्स से तुमको,
रोज रिविजन करता हूं तुम्हारा, तुम्हें याद करता हूं,
यूं ही पढते-पढते शायद तुम पूरी याद हो जाओगी,
हां उम्मीद है आज भी कि तुम मिल ही जाओगी।
No comments:
Post a Comment